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सजनी साजन से मिली, सजी चाँदनी रात होंठों के उत्पल

सजनी साजन से मिली, सजी चाँदनी रात
होंठों के उत्पल खिले, हुए मधुर हालात ।।
हुए मधुर हालात, प्रेम-रस बिखर रहा है
तन है तन में लीन, मन विहग निखर रहा है ।।
कहत सनम हर्षाय, सजी खुशियों की रजनी
तन का करके मिलन, मुदित हैं साजन-सजनी ।।

©Shashank मणि Yadava "सनम"
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