#परवाज़ दूर दरख़्त पर बसर है कुछ परिंदों का ख़ामोश, तन्हा पर आबाद हैं शाखों पर हर शाम एक सवाल ज़ेहन में आता है उनके क्यूँ बिना ज़ंजीर कैद है जिंदगी ख़ारों पर कैसा अजब हाल है, हालात पे मलाल है; के शक है आसमां को भी जब परवाज़ पर ख़ैर अब क्या शिकायत करें ख़ुदा से भी जब बोझ है हम खुद उसकी कायनात पर