मुझसे ये इश्क़ बस इतना ही आज़माया गया जहॉ इश्क़ कि इबादत गढी गयी ताज़महल से सोचता रहा हाल-ए-मजमून देख के मैं वही पर क्यू ये पागलखाना भी बनाया गया सोचा है कभी