फुरसत कहां मिलती हैं अल्फाजों से निकलने की। दिल तो करता है हर पल यारों से गले मिलने की। सोचता हूं तेरे ही आशियानों में किराए भरने की। कम से कम मोहलत तो मिल जाएगी भाभियों से मिलने की। ©M A Waquar only for friends #Books