इस महंगे बाजार में केवल जान की कीमत सस्ती है... मिट्टी से बने इन पुतलों में तेरे और मेरी एक हंसती है दुख से साथ पुराना है, मगर यह आंसू रोज़ आते नहीं हैं ढूंढते हैं खुशी दुनिया में और खुद को खोज पाते नहीं हैं लहरों पर टिके आशियान से हँसीन दूर से लगे जहान है चौखट के बाहर अनन्त गहरा सागर, तोड़ें यहीं गुमान है कहते हैं इस सागर के भी नीचे एक दुनिया बस्ती है... मिट्टी से बने इन पुतलों में तेरे और मेरी एक हंसती है सोच तेरा आकाश है, तेरे सपने उस गगन के तारे हैं तारों के जैसे अनगिनत, हमारे सपने भी इतने सारे है नसीब तो उनका भी होता है जिनके हाथ कटे होते हैं! चाहतों की किताब में कई अक्षर अश्कों से मिटे होते हैं फिर भी ये निगाहें पतझड़ में सावन बनकर बरसती है मिट्टी से बने इन पुतलों में तेरे और मेरी एक हंसती है मंजिल तक का सफर हो और पांव में छाले भी ना हों हम कहते हैं ऐसा सफर सफर कहलाने लायक ना हो! जब कष्टों में भी चेहरे पर मुस्कुराहट आने लग जाती है.. ऐसे ही लोगो की एक दिन दुनिया में मिसालें दी जाती है जलता दिया है मगर असलियत में बाती झुलसती है.. मिट्टी से बने इन पुतलों में तेरे और मेरी एक हंसती है ©Shuchi Saxena तेरी और मेरी एक हंसती हैं ✍🏻💝 #CityEvening #Inspiration #Motivation #Life