प्राण शर्म ना आयीं निष्ठुर -पापियों को छल से मुझपे प्रहार किया! समर्थ थी मैं लड़ने को असमर्थ तेरे हत्यार ने बना दिया! युद्ध करता दो हाथों से तूने फरेब के शस्त्र से मेरा घात किया! खुद के भूखे तन के खातिर खंजर से शरीर में छेद किया! ऐ खुदा अब तो उठ जा कितने प्राण ऐ नामर्द लेते जाएंगे! तेरे द्वार कभी खुलेंगे या बेजुबाँ के लिए हमेशा बंद रह जायेंगे! ©VAniya writer * #JusticeForRabiya #justice #JusticeForRape #Justic #rabiya #JusticeforRabiya