हम मुरव्वत में मात खाते रहे दर्द सह कर भी मुस्कुराते रहे वो मेरी दसतरस में था ही नहीं जिससे ख्वाबों में दिल लगाते रहे दिल अमावस के चांद जैसा है हम अंधेरों में मुंह छुपाते रहे एक बस उसकी शादमानी को ज़ख्म पे ज़ख्म दिल पे खाते रहे उनको ही हम से कुछ गुरेज़ रहा जानो दिल जिन पे हम लुटाते रहे वो हर एहसास से रहा महरूम और हम दास्तां सुनाते रहे अब समर कोई मस्हला न रहा दिल से जाना था जां से जाते रहे