👇स्त्री ...त्रिया चरित्र या आपकी रुग्णता?
स्त्री क्या त्रिया, गूढ़ है बेबूझ है....ऐसी बातें स्त्री पर ?
किन्तु स्त्री के किस रूप की बात करते हैं लोग समझ नही आया आज तक मुझे, किस स्त्री की बात करते हैं,लोग!
स्त्री के जितने रूप को मैने जाना है उसे जीने से ज्यादा कहीं निजी!
तौर पर समझा है फिर वो माँ, बहन, पत्नी, मित्र, और सभी कुटुम्बी रिश्तों में मुझे तो कहीं स्त्री अजनबी नही लगी,
सारे रिश्तों में बराबर की साझेदार रही हैं, और हर रिश्तों में सहज सरल समर्पित स्त्री अपने इस चरित्र को खुद नही जानती