लोगों को आज भी लगता है कि राजा राम ने माता सीता का परित्याग किया, उन्हें पुनः वनवास भेजा इसलिए वे धरती मैं समा गईं। पर वे तो अपने मातृत्व धर्म का निर्वाह १२ वर्षों से कर रही थीं, परित्याग के बावजूद।। उन्होंने धरती में समाने का निर्णय इसलिए लिया, क्योंकि वे उस समाज में वापस नहीं जाना चाहती थीं, जिस समाज ने उनकी अग्नि परीक्षा का सम्मान भी नहीं किया, उनके त्याग, समर्पण, निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह उठाए।। परंतु उससे भी महत्वपूर्ण, स्वयं उनके पति ने उनके साथ विश्वासघात किया, न उन्हें उस धोबी की बातों से अवगत करवाया और न ही परित्याग के अपने निर्णय के विषय में। सघन वन में अपने भाई लक्ष्मण द्वारा, उन्हें ऐसे छोड़ दिया गया मानो वो कोई हिंसक पशु हों, जिससे अयोध्या जल्द से जल्द मुक्त होना चाहती हो।। वे तो हंसते - हंसते पुनः वनवास स्वीकार कर लेंती यदि राजा राम ने सम्मानपूर्वक उनसे यह कहा होता। स्त्री जाति के उत्थान, मान सम्मान और अधिकारों के हनन को रोकने के लिए एक महारानी ने, एक पत्नी और एक माता ने जो इतना बड़ा त्याग किया, क्या वह उद्देश्य आज पूरा हो पाया है? क्या आज भी एक स्त्री के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह और समाज द्वारा शोषण उसका रुक पाया है? ©Divya Thakur नारी नर तरया। नारी ही वह शक्ति है जो अनेक नरों को इस भवसागर से तार देती है। सीता ही थीं जिनके सानिध्य से राम ने अपनी धर्म परायणता और मर्यादा पुरुषोत्तम की ख्याति प्राप्त की। इसलिए आज भी उन्हें सिया के राम कहा जाता है।। #musings