समय जब उम्र की ऊंगली थामे चलता है
तो जीवन उस चौखट पर आ पहुंचता है जहां दीपक की धीमी लौ धुंधली स्मृतियों की चादर में अपना ही साया इतना स्पष्ट
झलकता है जितना दिन के चटकते उजाले में भी न दिखे ।
कुछ अनुभवों के रंग बालों में उभर आते हैं एकदम सफेद ;जब भी मैं अपने पिता के सफेद बालों को देखती हूं तो सहज मुस्कान लिए एक प्रश्न तैर आता है !
वृद्धावस्था ने ये रंग ही क्यों चुना ???
फिर मन का सिर्फ़ एक ही उत्तर आता है