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~©Anjali Rai समय जब उम्र की ऊंगली थामे चलता है तो

~©Anjali Rai समय जब उम्र की ऊंगली थामे चलता है 
तो जीवन उस चौखट पर आ पहुंचता है जहां दीपक की धीमी लौ धुंधली स्मृतियों की चादर में अपना ही साया इतना स्पष्ट 
झलकता है जितना दिन के चटकते उजाले में भी न दिखे ।

कुछ अनुभवों के रंग बालों में उभर आते हैं एकदम सफेद ;जब भी मैं अपने पिता के सफेद बालों को देखती हूं तो सहज मुस्कान लिए एक प्रश्न तैर आता है !
वृद्धावस्था ने ये रंग ही क्यों चुना ???

फिर मन का सिर्फ़ एक ही उत्तर आता है
~©Anjali Rai समय जब उम्र की ऊंगली थामे चलता है 
तो जीवन उस चौखट पर आ पहुंचता है जहां दीपक की धीमी लौ धुंधली स्मृतियों की चादर में अपना ही साया इतना स्पष्ट 
झलकता है जितना दिन के चटकते उजाले में भी न दिखे ।

कुछ अनुभवों के रंग बालों में उभर आते हैं एकदम सफेद ;जब भी मैं अपने पिता के सफेद बालों को देखती हूं तो सहज मुस्कान लिए एक प्रश्न तैर आता है !
वृद्धावस्था ने ये रंग ही क्यों चुना ???

फिर मन का सिर्फ़ एक ही उत्तर आता है

समय जब उम्र की ऊंगली थामे चलता है तो जीवन उस चौखट पर आ पहुंचता है जहां दीपक की धीमी लौ धुंधली स्मृतियों की चादर में अपना ही साया इतना स्पष्ट झलकता है जितना दिन के चटकते उजाले में भी न दिखे । कुछ अनुभवों के रंग बालों में उभर आते हैं एकदम सफेद ;जब भी मैं अपने पिता के सफेद बालों को देखती हूं तो सहज मुस्कान लिए एक प्रश्न तैर आता है ! वृद्धावस्था ने ये रंग ही क्यों चुना ??? फिर मन का सिर्फ़ एक ही उत्तर आता है