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शाम ढ़ल गई रात हो गई, तुम आई ना बस आई तेरी याद। गुज़

शाम ढ़ल गई रात हो गई,
तुम आई ना बस आई तेरी याद।
गुज़ारी रातें देखा सपना,
बुन उन चंद लम्हों की याद।
सुबह हो गई ना टूटा उम्मीद,
कभी तो सुन लो मेरी फ़रियाद।
कब तक रहूँ ऐसे तड़पन में,
यूँही गाँठ बाँधे तेरी याद। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को समर्पित।
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शाम ढ़ल गई रात हो गई,
तुम आई ना बस आई तेरी याद।
गुज़ारी रातें देखा सपना,
बुन उन चंद लम्हों की याद।
सुबह हो गई ना टूटा उम्मीद,
कभी तो सुन लो मेरी फ़रियाद।
कब तक रहूँ ऐसे तड़पन में,
यूँही गाँठ बाँधे तेरी याद। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को समर्पित।
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raviranjan3878

Ravi Ranjan

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