मंजिले उदास है फिर भि उतना हि प्रयास है छोटी सि जिंदगी के हर पहेलु उतना हि आजाद है मानो उडता पन्छी बादलो में बैठकर करता आराम है... हकिकत और देखावा एक सिसे मे कैद है जो नजर नहि आता जो सम्झ भि नहि आता लेकिन हकिकत और देखावा मगर होते है, हम और आप हि जैसे छ्लकता इसारो ने आज पैगाम भेजि है रुक जाउ फिर भि, कहा आराम भेटी है यहि तो दर्द है जो रुकता नहि क्या किसमत पाया है यहि तो नाम है जो भुल्ता नहि ©Yudi Shah मंजिले उदास है फिर भि उतना हि प्रयास है छोटी सि जिंदगी के हर पहेलु उतना हि आजाद है मानो उडता पन्छी बादलो में बैठकर करता आराम है... हकिकत और देखावा