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मैंने हमेशा चुना संवाद क्योंकि अधिक देर तक मौन द

मैंने हमेशा चुना संवाद 
क्योंकि अधिक देर तक मौन 
दीमक की भांति कुरेद देता है
 रिश्तों की  नींव को
और
कर देता है, बेजान
रिश्तों की ईमारत को
फिर शेष मात्र रहता है,ढांचा 
जिसमे लग जाते है
नफरतों के जाल
गुज़रते वक़्त के साथ 
मज़बूत होते
 नफरतों के इस 
जाल में 
हाथ आती है,सिर्फ तन्हाई।

©Bhupendra Rawat
  मैंने हमेशा चुना संवाद 
क्योंकि अधिक देर तक मौन 
दीमक की भांति कुरेद देता है
 रिश्तों की  नींव को
और
कर देता है, बेजान
रिश्तों की ईमारत को
फिर शेष मात्र रहता है,ढांचा

मैंने हमेशा चुना संवाद क्योंकि अधिक देर तक मौन दीमक की भांति कुरेद देता है रिश्तों की नींव को और कर देता है, बेजान रिश्तों की ईमारत को फिर शेष मात्र रहता है,ढांचा #कविता

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