Nojoto: Largest Storytelling Platform

परछाई मन ही मन क्या सोचते रहते हो ? किसकी आभा उ

परछाई 

मन ही मन 
क्या सोचते रहते हो ?
किसकी आभा उकेरते रहते हो ?
जो दिल में है ,
वो जुबा पे लाओ ।
कमसे कम मुझसे ना शर्माओ।
 मैं ठहरा 
मात्र तेरी परछाई ,
तो तू क्यों मुझसे डरता भाई ।
 बड़बड़ा तू भी 
जैसे बड़बड़ाता नाई ।
 तभी घटेगी 
तुम्हारी कठिनाई ।

©Rakesh Kumar Das
  परछाई

परछाई #कविता

1,059 Views