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तुम्हें ढूंढने को बतियाने लगे हैं हम पल्लवों से,

तुम्हें ढूंढने को बतियाने लगे हैं हम
 पल्लवों से, वृक्षों से, बागों से, बगीचों से, 
भवरों से, पंछियों से.!
 रघुबर भी अपनी सिया को खोजने के लिए
 मानो इतने ही आतुर थे...!
हे खग मृग, हे मधुकर श्रेनी..!
तुमने देखी सीता मृगनैनी...?

©एक अजनबी
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