हारने का डर नहीं मुझे मैं फ़िर निकल पढ़ा हूँ मंज़िल की ओर निकल पड़ा हूँ अपने काशाना से, फिर से जीतने की ओर मुझको डर नहीं साथ में मेरे है हरदम मेरा रहबर मेरा मुर्शिद है वो अबकी 'सफ़र' घर लौटेगा नहीं जब तक पकड़ न ले नाख़ुदा की मुक़द्दस डोर काशाना- छोटा घर मुर्शिद- मार्गदर्शक नाख़ुदा- दरिया पार कराने वाला मुक़द्दस- पवित्र 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 💫Collab with रचना का सार..📖