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कश लगा रहे हो उलझनों के नाम पे ज़िन्दगी कर रहे ध

कश लगा रहे हो 
उलझनों के नाम पे 
ज़िन्दगी कर रहे 
धुँए के नाम पे
जल रहे हैं ख़ाब 
हर कश के साथ 
धुआं हो रहीं 
उम्मीदों की सीढ़ियां 
बढ़ रही है 
उस अंतहीन गलियारे 
की ओर 
जहाँ से 
छूट जाती है 
वापसी को डोर 
लौट आओ 
अभी के.. राहों में 
वो अभी बैठे हैं
कहीं उम्मीद 
छूट गयी 
तो दोनों तन्हा हो जाओगे

©Prapti Singh
  #BlackSmoke 
#smoking
#life