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उदारता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती है। अनेक परम

उदारता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती है।
अनेक परम्पराएं समाज की पहचान होती हैं।
कुछ परम्पराएं समय के साथ अपनी सार्थकता खोती जाती हैं।
कट्टरपंथी विचार जहां इनसे चिपके रहना चाहते हैं,
वहीं उदारमना लोग समय के साथ बने रहते हैं।
लचीले होते हैं।
यह फूल की उदारता ही है कि कोई भी भंवरा
उसका पराग ले सकता है।
कोई भी राहगीर उसकी सुगंध भीतर उतार सकता है।
क्यों व्यक्ति अपने माधुर्य से सबको सींच नहीं सकता?
क्योंकि उसका अहंकार उसे
पूर्वाग्रह के जाल में बांधे रखता है। वह दूसरों को भी वैसा ही मानता है। जबकि सामाजिक स्तर पर उदारता आपसी सौहाद्रü एवं सम्पर्को का विकास करती है। इसमें भी एक श्रेणी उन लोगों की होती है, जो उदारता का ढोंग करने वाले होते हैं। धर्म के क्षेत्र में उदारता दिखाने वालों की कमी किसी भी सम्प्रदाय में नहीं है। उदारता का पहला कदम ही मन को स्वत: स्फूर्त कर देता है। आप किसी से मीठा बोलकर देखिए, कड़ुवे बोल का उत्तर मत दीजिए अथवा ऎसा बोलने वालों के साथ भी आप तो मृदु बनकर देख लीजिए। कभी कोई आर्थिक सहायता मांगने आ जाए, संकट की घड़ी में, तब बिना परिचय पूछे उसकी मदद करके देख लीजिए। उसके चहरे की प्रसन्नता आपको अपने किए कार्य का महžव समझा देने वाली है।

 

सेवा और भक्ति के क्षेत्र में तो बिना उदारवादी दृष्टिकोण के प्रवेश ही असम्भव है। वह प्रसन्न आत्मा आपको अपना ही लगता है। पराएपन का भाव लुप्त हो जाता है। उदारतापूर्वक की गई सेवा में व्यक्ति स्वयं को पीडित का अंग मानकर कार्य करता है। अपने जीवन का महžवपूर्ण काल खर्च करता है। जो प्रत्युत्तर मिलता है, वह ईश्वर का आशीर्वाद ही होता है। व्यक्ति अपने भीतर भी ईश्वर की अनुभूति करने लगता है।
उदारता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती है।
अनेक परम्पराएं समाज की पहचान होती हैं।
कुछ परम्पराएं समय के साथ अपनी सार्थकता खोती जाती हैं।
कट्टरपंथी विचार जहां इनसे चिपके रहना चाहते हैं,
वहीं उदारमना लोग समय के साथ बने रहते हैं।
लचीले होते हैं।
यह फूल की उदारता ही है कि कोई भी भंवरा
उसका पराग ले सकता है।
कोई भी राहगीर उसकी सुगंध भीतर उतार सकता है।
क्यों व्यक्ति अपने माधुर्य से सबको सींच नहीं सकता?
क्योंकि उसका अहंकार उसे
पूर्वाग्रह के जाल में बांधे रखता है। वह दूसरों को भी वैसा ही मानता है। जबकि सामाजिक स्तर पर उदारता आपसी सौहाद्रü एवं सम्पर्को का विकास करती है। इसमें भी एक श्रेणी उन लोगों की होती है, जो उदारता का ढोंग करने वाले होते हैं। धर्म के क्षेत्र में उदारता दिखाने वालों की कमी किसी भी सम्प्रदाय में नहीं है। उदारता का पहला कदम ही मन को स्वत: स्फूर्त कर देता है। आप किसी से मीठा बोलकर देखिए, कड़ुवे बोल का उत्तर मत दीजिए अथवा ऎसा बोलने वालों के साथ भी आप तो मृदु बनकर देख लीजिए। कभी कोई आर्थिक सहायता मांगने आ जाए, संकट की घड़ी में, तब बिना परिचय पूछे उसकी मदद करके देख लीजिए। उसके चहरे की प्रसन्नता आपको अपने किए कार्य का महžव समझा देने वाली है।

 

सेवा और भक्ति के क्षेत्र में तो बिना उदारवादी दृष्टिकोण के प्रवेश ही असम्भव है। वह प्रसन्न आत्मा आपको अपना ही लगता है। पराएपन का भाव लुप्त हो जाता है। उदारतापूर्वक की गई सेवा में व्यक्ति स्वयं को पीडित का अंग मानकर कार्य करता है। अपने जीवन का महžवपूर्ण काल खर्च करता है। जो प्रत्युत्तर मिलता है, वह ईश्वर का आशीर्वाद ही होता है। व्यक्ति अपने भीतर भी ईश्वर की अनुभूति करने लगता है।