सुनो, मेरी उदासी मेरे उढासी का यह बजह है मे कभि हार ना जाउं, थक ना जाउं इस जमानत मे। तो क्या हाल करढिया ये उढासी ढिल ने कभी भटक ना जाउं, टुट ना जाउं है यहि तो मेरे शिकायत है। ना जाने ये कैसे ये रिश्ते है जिसमें हम उढासि है। सच का गम क्यों नही समझाता है लोगों झुट् का बादा यह पर पकि हैं। ना जाने क्यों ये ढिल बड़ी उढासी है ये ढिल कैसे उढासी है। उढासी मन मेरा