"जलप्लावन : शैवालिनि(नदी) पीड़ा" ( अनुशीर्षक👇) ********************************* पीड़ायें तो पीड़ायें हैं विह्वल पीड़ायें क्या जाने, है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही माने. कल-कल निनाद की तानों में यह कैसा भाव पला है, समझ रही संगीत जिसे दुनिया वो रुदन - कला है. न थके नेत्र न रुकी अश्रु की यह अविरल जलधारा,