कविता "धिक्कार है उन बेटों को" कठोर हृदय बनते जा रहे हैं, इस भारत माँ की भूमि पर। सरवन से लाल भी पैदा हुए, इस भारत मां की भूमि पर। धिक्कार है ऐसे बेटों को, जो मां बाप की सेवा,कर ना सके। धिक्कार है उन बेटों को, जो मां-बाप की संपत्ति हड़प गए। कितने वृद्धा आश्रम भारत में, भी देखो कैसे हैं खड़े हुए। धिक्कार है उन बेटों को, जिनके माता-पिता वहां पड़े हुए। इतने ऊंचे उड़ रहे हैं जो, आकाश को छूना चाहते हैं। वो क्या जाने ऐसे बेटे, सबकी नज़रों से गिर जाते हैं। मां बाप को दुख देकर वो, धरती पर कलंक बन जाते हैं। कितने स्वार्थी बनते हैं, यह लोग यहां इस धरती पर। इतना धन इकट्ठा करके भी, मां बाप को टुकड़ा दे न सके। धिक्कार है ऐसे बेटों को, जो मां बाप की सेवा कर न सके। यह जानते हुए भी के सब कुछ, छोड़ के यहां से जाना है। संसार में सब कुछ देखकर भी, कर्मों से बना अनजाना है। फिर भी अत्याचार करे वो, कैसी यह धर्म की मर्यादा है। "ज्ञानेश" इस निर्मम रीति से, बढ़ रहा क्रोध कुछ ज्यादा है। रचनाकार ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश" राजस्व एवं कर निरीक्षक किरतपुर (बिजनौर) सम्पर्क सूत्र 9719677533 Email id-gyaneshwar533@gmail.com ©Gyaneshwar Anand कविता "धिक्कार है उन बेटों को" कठोर हृदय बनते जा रहे हैं, इस भारत माँ की भूमि पर। सरवन से लाल भी पैदा हुए, इस भारत मां की भूमि पर।