कल महसूस हुआ, #विषैलावामपंथ पुस्तक एक मंजिल नहीं, एक यात्रा है.
कल शाम कॉलेज के बच्चों के एक झुण्ड से मिला. 24-25 साल के बच्चे, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियां करते हुए. उनका आधा घंटा समय चुरा कर उनसे बातें की. उन्हें उनकी भाषा में वामपंथ का विष समझाया.
उनमें से एक लड़का वामियों के प्रभाव में था. उसने कुछ बेहद प्रासंगिक प्रश्न पूछे जिनका जवाब देने में मजा आया, और अपनी सोच भी स्पष्ट हुई.
पहली शंका थी वामपंथ की परिभाषा में. उसने कहा - वामपंथ वह सिद्धांत है जो समानता चाहता है.
मैंन