सामने मंज़िल थी और, हम छू भी ना सके!! कदम लहूलुहान थे और, खुद का रंग देख भी न सके!! नाइंसाफी देखो लकीरों की लकीरों से, मेरे ही हथेली पर थे और, मेरे ही बनकर रह ना सके!! #December #poetry#nojoto#quotes