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उन्हे फिर से हम याद आने लगे है, जिनको भूलने में कई

उन्हे फिर से हम याद आने लगे है,
जिनको भूलने में कई जमाने लगे है,
प्यार, वफ़ा का जिन्हें इल्म नहीं,
वो हमे इश्क के नाम पे आजमाने लगे है,
मेरे मिटने से जिनके घरों में रानईया थी आती,
वो ही लंबी उम्र की आजाने लगाने लगे है,
ऐतबार नहीं था जिन्हें मेरे होने से कभी,
रुक्सत ए लिबास को वो जलाने लगे हैं,
कल तलक जो मिटाने पे तुला था घरौंदा मेरा,
इत्तेफाकन वो ही आशियाना बनाने लगे हैं,
जिनके जुबां पे बसे थे खुलूस मेरे दर्मिया,
वो अपने बेवफ़ाई का पर्दा उठाने लगे हैं,
खुरेदा जब वादों के चोट ए निशां को हमने,
वो कब्र की मिट्टी तले वादों को दबाने लगे हैं,
उन्हें फिर से हम याद आने लगे है,
जिन्हे भूलने में कई जमाने लगे हैं।। 



                                                ~आशुतोष दुबे #कई जमाने लगे हैं
उन्हे फिर से हम याद आने लगे है,
जिनको भूलने में कई जमाने लगे है,
प्यार, वफ़ा का जिन्हें इल्म नहीं,
वो हमे इश्क के नाम पे आजमाने लगे है,
मेरे मिटने से जिनके घरों में रानईया थी आती,
वो ही लंबी उम्र की आजाने लगाने लगे है,
ऐतबार नहीं था जिन्हें मेरे होने से कभी,
रुक्सत ए लिबास को वो जलाने लगे हैं,
कल तलक जो मिटाने पे तुला था घरौंदा मेरा,
इत्तेफाकन वो ही आशियाना बनाने लगे हैं,
जिनके जुबां पे बसे थे खुलूस मेरे दर्मिया,
वो अपने बेवफ़ाई का पर्दा उठाने लगे हैं,
खुरेदा जब वादों के चोट ए निशां को हमने,
वो कब्र की मिट्टी तले वादों को दबाने लगे हैं,
उन्हें फिर से हम याद आने लगे है,
जिन्हे भूलने में कई जमाने लगे हैं।। 



                                                ~आशुतोष दुबे #कई जमाने लगे हैं