( 4 ) दु:खित हृदय से निकल रही माँ तेरी कोख से चीखती पुकार कब तक बचाऊं इन सांसों को मैं अब सही ना जाये ये अत्याचार मानवता की साक्षी हूँ मैं हे माँ मातृत्व का मैं ही आधार आज पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल पड़ी फिर क्यों कर रही तू मुझसे दूजा व्यवहार सफलता का मैं पर्याय बन चुकी देश की अर्थव्यवस्था का मैं एक मजबूत आधार न जाने कब तू कातिल बन बैठी अब न ढो इस पाप को तू अबकी बार अब न ढो इस पाप को तू अबकी बार कहीं बौखला न जाये कल का अखबार बेटी ही सही मुझसे ही पूरा होता तेरा अधूरा सा परिवार दु:खित हृदय से निकल रही माँ तेरी कोख से चीखती आज मेरी पुकार #कोख अंजलि भूमिका