तेरे दर से चलें हम तो कहाँ जाके पहुँचे, राश्ते तो वही हैं मगर मंजिलें हैं नदारद। है सफर भी वही ख़्वाहिशें भी तुम्ही हो, ख्वाब में भी हैं तनहा हमसफ़र है नदारद। इबादत भी तुम से दुआ में भी तुम ही, मगर अब न जाने क्यूँ असर है नदारद। कसमकस में है जीवन उलझनें है बहुत सी, ना खुशियाँ है हासिल सुकून भी नदारद। है ये कोहरे का मौसम या अमावस है छायी, आस्मां तो वहीँ है मगर चाँद है अब नदारद। - क्रांति #नदारद #क्रांति