जनवरी की बारिश और तुम। याद है ना वो जनवरी की शाम जो बारिशों से भींगती थीं। कोचिंग से निकल कर तुम कुछ परेशान सी बोलती -" ऊफ़्फ यार दिव्याँश, बारिश हो रही है मेरे घर की गली तक साथ चलो फिर घर चले जाना प्लीज़।" सच कहूं तो तुम्हें प्लीज़ कहने की ज़रूरत भी कहां थी। मेरे ऊपर सारा हक तो तुम्हारा ही था और वो मासूम सी आंखें। उसपर जब तुम परेशान होती थी ना तो तुम्हारी दोनों भृकुटियां कुछ सिकुड़ सी जाती, आंखे कुछ छोटी सी हो जाती और तुम्हारे मुंह से वो च्च की आवाज़ निकलती थी। अब इस सूरत में तुम मुझे जो भी कहती मैं कभी मना नहीं कर पाता। नाहक ही प्लीज़ बोलके दिल को और गुदगुदा देती थी। फिर जैसे ही मेन रोड छोड़ कर हम दोनों तुम्हारे मोहल्ले की पहली गली में मुड़ते कितने हक से तुम मेरे जैकेट में सिमट जाती थी। ना जाने कितनी बार बारिश की बूंदे तुम्हारे लबों को छू के गुजरती थीं जब तुम्हारे लब मेरे लबों को छूते थे। झूठ नहीं बोलूंगा, तुम्हारे जाने के बाद से बहुतों ने दिल में दस्तक दी पर इसके अंदर हमेशा से ही तुम थी। शायद आज भी सिर्फ तुम ही हो। कभी कभी सोचता हूं तुमसे कह दूं की क्या रक्खा है इस पराई सी दुनिया में। लौट के आ जाओ अपनी दुनिया बसाते हैं। पर जानता हूं अब ये ना मैं कह सकता हूं ना तुम सुन सकती हो। मगर जब ये जनवरी की बारिश तुम्हारे आंगन में पड़े गमले में सोंधी खुशबू घोल कर तुम्हारे आस पास सिहरन बढ़ा देती है, तो तुम्हें भी वो बातें याद आती हैं क्या। और एक बात- सिर्फ तुम। #NojotoQuote #hindi #feelings #love #january #sirftum madan sunder pradhan