// ज़िन्दगी की पहेली // हम ज़िन्दगी की तरफ वापस लौट रहे थे , ऐसा लग रहा था जैसे बरसो की पड़ी ज़मीन पर बर्फ पिघल रही हो। वो सारे एहसास, वो सारे आरज़ू ,जो इस सब के नीचे कहीं दब गई थी , वो सारे के सारे फ़िर से सर उठाने लगी थीं । तभी ज़िन्दगी जीने के लिए सब था मेरे पास , और ज़िन्दगी गुजारने के लिए , मेरे लिए ये उम्मीद काफ़ी थी..। - सुचिता पाण्डेय✍ // ज़िन्दगी की पहेली // हम ज़िन्दगी की तरफ वापस लौट रहे थे , ऐसा लग रहा था जैसे बरसो की पड़ी ज़मीन पर बर्फ पिघल रही हो।