था चला पकड़ मैं तेरी साँसों की डोर वस्ल की ख़ामोशियों का था हो रहा शोर ! महकी फ़िज़ा में जुगनुओं की चहलक़दमी वस्ल की राह में था मन का नाच रहा मोर ! उम्मीद के दिये की लौ थी थरथराती रही शब जवाँ थी अभी बहुत दूर लग रहा भोर ! चाँदनी में ले रही थी अंगड़ाइयाँ रात ऐसे देख चाँद को चकोर था हो रहा विभोर ! ©malay_28 #महकी फ़ज़ा