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मेरी ख्वाहिशों की भीड युंही नहीं खामख्वाह आई है, इ

मेरी ख्वाहिशों की भीड युंही नहीं खामख्वाह आई है,
इस बिकने को बैठे बाजार में मेरी ज़रा सी तनख्वाह आई है,

सब्जियों से लदे थे यह हाथ,आज हल्के से एक पनीर के तुकडे को ला रहे है,
जिंदगी तो बस है चार दिन की,बस इसी नुस्खे को आजमा रहे है,

उसी चार दिन ही छुट्टी लेते है महिने की,और जी लेते है जोरों से,
जरा बेढंगे हो जाते है हम उन दिनों ,जो चलते है अपने तौरों से,

कल फिर उठना है,फिर जाना है नौकरी पे,
फिर सुबह यही सोच के अफसोस होता है,
"इस बिकने को बैठे बाजार में मेरी ज़रा सी तनख्वाह आई है !!!"


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मेरी ख्वाहिशों की भीड युंही नहीं खामख्वाह आई है,
इस बिकने को बैठे बाजार में मेरी ज़रा सी तनख्वाह आई है,

सब्जियों से लदे थे यह हाथ,आज हल्के से एक पनीर के तुकडे को ला रहे है,
जिंदगी तो बस है चार दिन की,बस इसी नुस्खे को आजमा रहे है,

उसी चार दिन ही छुट्टी लेते है महिने की,और जी लेते है जोरों से,
जरा बेढंगे हो जाते है हम उन दिनों ,जो चलते है अपने तौरों से,

कल फिर उठना है,फिर जाना है नौकरी पे,
फिर सुबह यही सोच के अफसोस होता है,
"इस बिकने को बैठे बाजार में मेरी ज़रा सी तनख्वाह आई है !!!"


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namitraturi9359

Namit Raturi

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