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~ ग़ज़ल ~ वो मुझसे आ गये मिलने किसी बहाने से नहीं

~ ग़ज़ल ~
वो मुझसे आ गये मिलने किसी बहाने से
नहीं की देर उन्हें फिर गले लगाने से
ज़बानें बंद थीं आलम अजब सुकूत का था
निगाहें गुफ़्तगु करती रहीं ठिकाने से
ये आग या तो जलाती है या बसाती है
दिलों की आग कहां बुझती है बुझाने से
मैं उनकी आंख का आंसू न बन सका तो क्या
वो चश्म-ए-मन में बसे हैं अदम ज़माने से
• मिन्हाज ज़फ़र • #ग़ज़ल
~ ग़ज़ल ~
वो मुझसे आ गये मिलने किसी बहाने से
नहीं की देर उन्हें फिर गले लगाने से
ज़बानें बंद थीं आलम अजब सुकूत का था
निगाहें गुफ़्तगु करती रहीं ठिकाने से
ये आग या तो जलाती है या बसाती है
दिलों की आग कहां बुझती है बुझाने से
मैं उनकी आंख का आंसू न बन सका तो क्या
वो चश्म-ए-मन में बसे हैं अदम ज़माने से
• मिन्हाज ज़फ़र • #ग़ज़ल