उम्र-दर उम्र बस दुःख ही देखा, पर ऐसा दुःख कभी न था, डूब गया मैं इतना कि । फिर गम से उभर न सका।। हल्का करने कुछ दुःख को मैंने,सारी बात बयां की उससे। मैं रोता तो वो भी रोती, खुद संभलू या उसे संभालू। ऐसी दशा कुछ मेरी थी, शायद ही वहाँ कोई आता, समझाये मुझे मैं कुछ समझ पाता। कहे कि कोई मेरे साथ चलो,मैं सहारा समझ चले भी जाता।। रोते-विलखते आँसू पोछा, खाना खाये बिना ही सोता। दरिया थी पर किनारा नहीं, पगडण्डी पर ही सोता। समय रहते ही घर को लौटता, "काश" मेरा भी घर-परिवार होता।। #काश मेरा भी #घर-परिवार होता