बसंत की भोर में, 'पक्षियों के शोर में, भँवरों के गुंजन में, मानो प्रक्रति का मन इतराया। ईश्वरीय सत्ता ने भी जैसे हो अमृत बरसाया। मन प्रफुल्लित, भूल गया लोक लाज को, अपने कल को अपने आज को, कोटि कोटि नमन करता हूँ, कुसमाकर को श्रतुओं के राजाधिराज को। मेरा वन उपवन तो उदास है, पर आज का बसंत कुछ खास है।। बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं🙏 ©Rajesh rajak बसंत