Nojoto: Largest Storytelling Platform

नवगीत:– स्वर्ण समय के सिरहाने पर! भले दूरियों की

नवगीत:– स्वर्ण समय के सिरहाने पर!

भले दूरियों की डोरी से, बंधे हुए हैं हम।
फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥

स्वर्ण समय के सिरहाने पर, स्मृतियां हैं बैठीं।
अहंकार के अंगीठी में, श्रुतियां हैं ऐंठी॥

कड़वाहट की कंठी माला, दिखा रहे हैं दम।
फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥

चाहत के चलचित्र न जानें, फिर कब मचलेंगे।
आशा के अकुलाए बर्तन, कब खुश निकलेंगे॥

मुरझाए आंगन दीवारें, झेल रहे हैं गम।
फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥

अनशन के पहिये इस घर में, चाहे जब डोलें।
मंदिर के मासूम मजीरे, चाहे जब बोलें॥

नैनों के दरवाजे चाहे, जितने बोयें तम।
फिर भी साथ तुम्हारे जीना, ए मेरे हमदम॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
  #नवगीत #स्वर्ण_के_समय_सिरहाने_पर