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सूर्यास्त बोलते हैं! हिला हिला कर पतले दरख़्तों

सूर्यास्त बोलते हैं! 

हिला हिला कर पतले दरख़्तों की कलाइयाँ 

कुम्हलाए सुमन-गुच्छों की गंध से 

अपमानित क्षितिज खोलते हैं!

©Neha Gulati Sabrang सूर्यास्त बोलते हैं! 

हिला हिला कर पतले दरख़्तों की कलाइयाँ 

कुम्हलाए सुमन-गुच्छों की गंध से 

अपमानित क्षितिज खोलते हैं!
सूर्यास्त बोलते हैं! 

हिला हिला कर पतले दरख़्तों की कलाइयाँ 

कुम्हलाए सुमन-गुच्छों की गंध से 

अपमानित क्षितिज खोलते हैं!

©Neha Gulati Sabrang सूर्यास्त बोलते हैं! 

हिला हिला कर पतले दरख़्तों की कलाइयाँ 

कुम्हलाए सुमन-गुच्छों की गंध से 

अपमानित क्षितिज खोलते हैं!