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हाँ बाँझ हूँ मैं! बता इसमें क्या खता है मेरी? तूने

हाँ बाँझ हूँ मैं! बता इसमें क्या खता है मेरी?
तूने ब्याह किया मुझसे नही गलती कोई तेरी।
ग़र बच्चा न हो, तो क्या घर! घर नहीं होता है?
फ़िर तू क्यों उदास घूमता, और दिल ही दिल में रोता है।
एक अम्मा है! जो दिन रात बस बच्चा-बच्चा चिल्लाती है,
मैं भी एक औरत हूँ, यह बात क्यों वो भूल जाती है?
नहीं कुछ हाथ में मेरे! तुझे बाप का सुख़ न दे पाऊँगी,
ग़र तू लाना चाहे, ले आ सौत मेरी, में एक आँसू न बहाऊँगी।
जा दी आज़ादी, अब कर ले तू अम्मा की वो मुराद भी पूरी, 
माँ तो न बन पाई, शायद आंटी तो बन ही जाऊँगी।
लेकिन जान ले एक बात मेरी, दिल मेरा भी रोता है,
बाँझ होने का ताना, आकार जब हर कोई देता है।
शादी मेने तुझसे की, और जान तू मुझको कहता है,
फ़िर क्यों समाज की सुनकर तू, गुमसुम सा रहता है।
अब सब पहले जैसा नही लगता साहिब, रिश्ते में लग गई चिंगारी,
माफ़ करना! मैं नहीं ला पाई तेरे घर में बच्चे की किलकारी।
अच्छा सुनों, कहीं से पता चले, तो ज़रूर बताना
हाँ मानती हूँ, बाँझ तो हूँ मै! पर इसमें क्या खता है मेरी।। एक सच यह भी, किसी की भावनाएं इतनी बड़ी नही होती की सब भूल जाएं, लोग माने या न माने बच्चे खुदा की ही देंन होते है।
han banjh hun main isme kya khata hai meri,
tune byah kiya mujhse, nahi galti koi teri.
bacha na ho, to kya ghar, ghar nhi hota hai,
phir tu kyu udaas ghumta aur dil hi dil me rota hai,
ek amma hai jo din rat bacha bacha chillati hai,
me bhi ek aurat hun, ye kyu wo bhul jati hai,
nahi hath me mere, ki tujhe baap ka sukh de pau,
हाँ बाँझ हूँ मैं! बता इसमें क्या खता है मेरी?
तूने ब्याह किया मुझसे नही गलती कोई तेरी।
ग़र बच्चा न हो, तो क्या घर! घर नहीं होता है?
फ़िर तू क्यों उदास घूमता, और दिल ही दिल में रोता है।
एक अम्मा है! जो दिन रात बस बच्चा-बच्चा चिल्लाती है,
मैं भी एक औरत हूँ, यह बात क्यों वो भूल जाती है?
नहीं कुछ हाथ में मेरे! तुझे बाप का सुख़ न दे पाऊँगी,
ग़र तू लाना चाहे, ले आ सौत मेरी, में एक आँसू न बहाऊँगी।
जा दी आज़ादी, अब कर ले तू अम्मा की वो मुराद भी पूरी, 
माँ तो न बन पाई, शायद आंटी तो बन ही जाऊँगी।
लेकिन जान ले एक बात मेरी, दिल मेरा भी रोता है,
बाँझ होने का ताना, आकार जब हर कोई देता है।
शादी मेने तुझसे की, और जान तू मुझको कहता है,
फ़िर क्यों समाज की सुनकर तू, गुमसुम सा रहता है।
अब सब पहले जैसा नही लगता साहिब, रिश्ते में लग गई चिंगारी,
माफ़ करना! मैं नहीं ला पाई तेरे घर में बच्चे की किलकारी।
अच्छा सुनों, कहीं से पता चले, तो ज़रूर बताना
हाँ मानती हूँ, बाँझ तो हूँ मै! पर इसमें क्या खता है मेरी।। एक सच यह भी, किसी की भावनाएं इतनी बड़ी नही होती की सब भूल जाएं, लोग माने या न माने बच्चे खुदा की ही देंन होते है।
han banjh hun main isme kya khata hai meri,
tune byah kiya mujhse, nahi galti koi teri.
bacha na ho, to kya ghar, ghar nhi hota hai,
phir tu kyu udaas ghumta aur dil hi dil me rota hai,
ek amma hai jo din rat bacha bacha chillati hai,
me bhi ek aurat hun, ye kyu wo bhul jati hai,
nahi hath me mere, ki tujhe baap ka sukh de pau,
arshansari6017

Arsh Ansari

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