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जब दो महिलाएं,मिलती हैं,आपस में, सिर्फ चूल्हे,चौके

जब दो महिलाएं,मिलती हैं,आपस में,
सिर्फ चूल्हे,चौके तक ही सीमित नहीं होता वार्तालाप,
बातें मुख से होती हैं,
आंखों में आसूं होते हैं,हृदय करता है विलाप,
नहीं बहिन हम इंसान कहां,हम तो पुरुष के इशारों पर चलते हैं,
हमारे अरमान कहां,,सम्मान कहां,
पुरुष ही तय करता है,हमारी सीमा,
किससे बात करोगी, मित्रों में पुरुष मित्र नहीं,नहीं,
ये तो हो नहीं सकता,मर्द है वो,,
हाड़ तोड़ता,मद पीकर,फिर भी खुश रहना है,
संग उसी के जी कर,
बहिन, मै अपना विवेक पति नाम के पिंजरे में कैद रखती हूं,
महिला सशक्तिकरण,लंबे भाषण,
कुछ व्याख्या,कुछ व्याकरण,
हां बहिन,कब मिलेगी मुक्ति,कब ख़तम होगा,
पुरुष बाद से निजीकरण,
हम पुरुष के इशारे पर चलने वाले रोबोट न रहें,
न रखें कैद अपना विवेक,पुरुष के पिंजरे में,
हम भी इंसान हैं,स्वतंत्र रहें, पिंजरे से,,
जब दो महिलाएं,मिलती हैं,आपस में,
सिर्फ चूल्हे,चौके तक ही सीमित नहीं होता वार्तालाप,
बातें मुख से होती हैं,
आंखों में आसूं होते हैं,हृदय करता है विलाप,
नहीं बहिन हम इंसान कहां,हम तो पुरुष के इशारों पर चलते हैं,
हमारे अरमान कहां,,सम्मान कहां,
पुरुष ही तय करता है,हमारी सीमा,
किससे बात करोगी, मित्रों में पुरुष मित्र नहीं,नहीं,
ये तो हो नहीं सकता,मर्द है वो,,
हाड़ तोड़ता,मद पीकर,फिर भी खुश रहना है,
संग उसी के जी कर,
बहिन, मै अपना विवेक पति नाम के पिंजरे में कैद रखती हूं,
महिला सशक्तिकरण,लंबे भाषण,
कुछ व्याख्या,कुछ व्याकरण,
हां बहिन,कब मिलेगी मुक्ति,कब ख़तम होगा,
पुरुष बाद से निजीकरण,
हम पुरुष के इशारे पर चलने वाले रोबोट न रहें,
न रखें कैद अपना विवेक,पुरुष के पिंजरे में,
हम भी इंसान हैं,स्वतंत्र रहें, पिंजरे से,,
rajeshrajak4763

Rajesh rajak

New Creator