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दफ्न हूँ किसी मिट्टी मे, या किसी राख की हूँ भस्म

दफ्न हूँ किसी मिट्टी मे, या किसी राख की हूँ भस्म 
आवाज़ मेरी अल्फाज़ बन, पनप रही शाखाओ मे,

दबा लो जब तक दबा सकोगे तुम, 
जो स्याह कलम की घुल रही हवाओ मे, 
उसको कब तक रोक सकोगे तुम। 
दर्ज किया है हर लम्हा , वक्त के कठोर पन्नो पर
फाड़ दो हर पन्ने को, पर घड़ी को कैसे टोक सकोगे तुम ।

 भस्म
दफ्न हूँ किसी मिट्टी मे, या किसी राख की हूँ भस्म 
आवाज़ मेरी अल्फाज़ बन, पनप रही शाखाओ मे,

दबा लो जब तक दबा सकोगे तुम, 
जो स्याह कलम की घुल रही हवाओ मे, 
उसको कब तक रोक सकोगे तुम। 
दर्ज किया है हर लम्हा , वक्त के कठोर पन्नो पर
फाड़ दो हर पन्ने को, पर घड़ी को कैसे टोक सकोगे तुम ।

 भस्म