उलझे मन मे ख्वाहिशों का दीवान बाकी है,
रूठे तरंगों को उकसाने का परवान बाकी है।
टूट जाएंगे हर दरवाज़े,जो दीवार बन खड़े है,
लहरों को क़ब्जे मे करने का,फ़रमान बाकी है।।
ढलते दिन में सहर देखने का उड़ान बाकी है,
बादलों से नीचे झांकने का अरमान बाकी है।
आँख के आसुंओं में देखना है खुशी के बूंदे,