उनसे मुलाकात जब होगी, मुस्कुराना नहीं, राहत साहब की बात पर अमल कर, हाथ दबाना नहीं। खुद ही खुद को संभाल सकता हूं मैं, अब किसी कंधे का चाहिए, सहारा नहीं। गर आंखें चार करने का यही हश्र होता है, तो निगाहें झुकाना बेहतर है, मिलाना नहीं। जब तक किरदार जिंदा रहेगा, रहूंगा काफ़िर, जिद्द है सजदों में उसके सिर झुकाना नहीं। राहत इंदौरी साहब को सलाम पहुंचे