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रंग रूप सौन्दर्य खोकर, कोख में तुझको पाला है। 9 मा

रंग रूप सौन्दर्य खोकर, कोख में तुझको पाला है।
9 माह अपने खून से सींच कर दुनिया में तुझे लाया है।।
जन्म देने तुझे उस माँ ने जीते जी खुद दूजा जन्म पाया है।
सारे ख्याल ख्वाब ख्वाहिशों को भूल तुझ पर ध्यान लगाया है।।

9 माह में माँ जितना संघर्ष नहीं पर उस बाप ने भी ख्यालों में तुझे पाला है।
जवानी के शौक भूल वो एक बेहतर बाप बनने हर तैयारी पूरी कर आया है।।
जज़्बातों को दबा तेरे हर ख्वाब पूरा करने अपने शौक बिसराया है।
9 माह फिर हर 9 घंटे की ड्यूटी के बाद बस उसने तुझे हंसता हुआ देखना चाहा है।।

वक्त बीतते वक्त न लगा और बच्चा अब खुद जवानी पर आया है।
त्याग और तपस्या का कर्ज अब सेवा से चुकाने का मौका पाया है।।
दोस्ती-यारी कुछ इश्कबाज़ी बाकी जवानी नौकरी-चाकरी में लगाया है।
माँ-बाप के हिस्से के वक्त में उसने कभी मोबाइल तो कभी गैरों संग वक्त बिताया है।।

छुप-छुपकर देखती रही निगाहें पर मुंह से कुछ न कहलाया है।
चाहतों को दबाने का ये सिलसिला तेरे जन्म से आज तक चलता आया है।।
माँ-बाप है न जनाब बच्चों की खुशी में हर दम खुश होना चाहा है।
दुनिया में लाने वालों को वक्त तो दो जनाब वरना तो‌ फिर कर्मा लौट कर भी आता है।।

©Deepanjali Patel (DAMS)
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