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अब ना लौटेंगें वो गुजरे जमाने जब हम तुमसे फ़रमाइशें

अब ना लौटेंगें वो गुजरे जमाने जब हम तुमसे फ़रमाइशें करते थे,
बीत गए वो लम्हे जब हम अपने प्यार की आजमाइशें करते थे।

चाहत तो बेशुमार थी तुमसे पर गलतफहमियों की दीवार गहरी थी,
यकीन करता था दिल तुम पर खुद से भी ज्यादा पर चोट गहरी थी।

अपनी जिंदगी से अब कोई भी शिकवा और शिकायत न रह गई,
भले ही प्यार ना रहा दरमियांँ पर प्यार की बंदिशें बाकी रह गई।

 📌नीचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 की प्रतियोगिता :- 190 में स्वागत करता है..🙏🙏

💫आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
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यकीन करता था दिल तुम पर खुद से भी ज्यादा पर चोट गहरी थी।

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