कब के बिछुड़ गए वो दिन वो खिलौने वो साथ वो छोटी छोटी बेमतलब की बातों पर खिलखिला के हंसना... जिसके चाही उसके साथ दोस्ती की जिसके साथ चाही उसके साथ कुट्टी.. सिर्फ़ हाथ मिला दिल मिला लिए करते थे हर लड़ाई भूल दोस्ती से गले लगा लिया करते थे... ना जात पात थी ना ऊंच नीच ना चश्मा धर्म का था बस एक मुस्कुराहट ही काफी थी दोस्ती के लिए... निकला हूं आज फिर ढूंढने वहीं पुराने दिन.. खोजने निकला हूं वो दोस्त का घर जो मम्मी को अपने अम्मी कहता था..और पापा को अब्बू.. वही इंसानियत वही मासूमियत वही तुतलाती बोली ढूंढ़ता हूं.. मम्मी के आंचल को छोड़ अम्मी के बुर्के को खींच फिर खेलना चाहता हूं.. बचपन में जा फिर वहीं निश्छल जीवन जीना चाहता हूं... कब के बिछुड़ गए वो दिन वो खिलौने वो साथ वो छोटी छोटी बेमतलब की बातों पर खिलखिला के हंसना... जिसके चाही उसके साथ दोस्ती की जिसके साथ चाही उसके साथ कुट्टी.. सिर्फ़ हाथ मिला दिल मिला लिए करते थे हर लड़ाई भूल दोस्ती से गले लगा लिया करते थे... ना जात पात थी ना ऊंच नीच ना चश्मा धर्म का था