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चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं, चाह

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरी ,मैं डाला जाऊं,
चाह नहीं ,देवों के सिर पर चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना ओ बनमाली ! उस पथ पर मुझे तुम देना फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ पर जाएं वीर अनेक

©"pradyuman awasthi"
  #पुष्प की अभिलाषा

#पुष्प की अभिलाषा #कविता

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