ये बात बनती-बिगड़ती, सांसें चलती रही, वक्त ले गया पुराने साथी नये ढ़ुंढती रही। ये ज़िन्दगी का सिलसिला रुकता नहीं, धूप-छांव, सुख-दुख कहीं स्थायीत्व नहीं, पड़ाव बहुत हैं, मगर मंज़िल एक मौत ही! ये ज़िन्दगी का सिलसिला रुकता नहीं, बात बनती-बिगड़ती, सांसें चलती रही, वक्त ले गया पुराने साथी नये ढ़ुंढती रही। ये ज़िन्दगी का सिलसिला रुकता नहीं, धूप-छांव, सुख-दुख कहीं स्थायीत्व नहीं, पड़ाव बहुत हैं, मगर मंज़िल एक मौत ही! Shree