क्यू बदलू मैं चोला अपना, क्यू तुझसा बन जाऊं। अपनी अस्मिता त्याग के, मैं क्यू तेरे रंग रंगाउ। क्यू बदलू मैं चोला अपना, क्यू तुझसा बन जाऊं। तुझसा दिखने की होड़ में क्यू अपना परम गवाउ। अपने कर्म से पाया जो जीवन, क्यू उसका, जूठा भरम फैलाउ। क्यू बदलू मैं चोला अपना, क्यू तुझसा बन जाऊं। कर्म ही धर्म हैं, धर्म ही कर्म हैं। क्यूं ना उस्का साथ निभाउ। क्यू बदलू मैं चोला अपना, क्यू तुझसा बन जाऊं। be you #beyou #poem #everyday