काश अगर तुम मेरी होती और मुझसे ही रूठी होती फिर तुम्हें मनाने को मैं कभी चांद सितारे लाता एक नवलखा हार दिलाता सोने के कंगन दिलवाता दुनियां भर की सैर कराता। सचमुच अगर तुम मेरी होती और मुझसे ही रूठी होती फिर तुम्हें मनाने को मैं ऐसा झूट कभी ना सुनाता ना चांद तारो के सपने दिखाता ना नवलखा कोई हार दिलाता। तुम्हें मनाने को फिर मैं घर में जलता दीप दिखता अपनी हैसियत से भी महंगी महरूनी एक साड़ी ले आता। कभी नदियों की सैर कराता उन्मुक्त उड़ते पक्षी दिखाता कभी खेत की मेढ़ दिखाता पर तुम्हें बिठा कर घर ले जाता। काश अगर तुम मेरी होती तो मुझसे कभी ना रूठी होती।। mahesh sharma #007