सोचकर लिखी कविताएँ याद है सारी मुझे बगैर सोचे जो लिखा जेहन में ना रहा मेरे तुम्हारे सामने आने के बाद भी सिलसिला नहीं थमा मैं जो सोच कर आया था वह घर ही भूल गया हकलाती रही ज़ुबान और काँपते रहे मेरे हाथ धड़कने अमरबेल की तरह ऊपर जाती रही फिर तुम कहते हो कि मैं चुप रहा तुम मेरी स्मृतियों की कविता हो जिसे मैं स्वयं कहने देता हूँ और सुनता हूँ सुखद संगीत! कितना सहल है मेरा तुम दोनों के प्रति प्रेम मेरा प्रेम मुझे ममता लगने लगा है जो दोनों दोनों को बराबर सींच रहा है या कभी तुम दोनों में भेद ही नहीं कर पाया फिर भी तुम परदेस में रहने वाले बच्चे हो जो कभी कभी मुझसे मिलने आते हो कविता तो सदैव मेरे पास रहती है तुम्हारे स्वरूप में। #अनाम_ख़्याल #अनाम_कविताएँ