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कुछ इस कदर से जिंदगी के मोड़ पे मिलना हुवा। टूटा थ

कुछ इस कदर से जिंदगी के मोड़ पे मिलना हुवा।
टूटा था मैं खुद से जैसे मानो कोई पत्ता बिखरा हुवा।।
फिर जाने चलते चलते कुछ यू टकराया मैं तुमसे जैसे ,
मिला कोई दोस्त बिछड़ा सा।।
हा तुम मेरे कहानी की गीत (the character of Imtiaz ali)
सी लगती हो!
हा वही गीत जो खुद के फैसले और भरोसे से जीती है।।
थोड़ी खूबसूरत ,थोड़ी झल्ली सी!
हा वही जो बात– बात पे नाराज होती है ।।
लेकिन मेरे अकेलेपन में भी हस कर कहती है!
वक्त है तो आओ आप मिल के तुम मुझे अपना दर्द बताना।
ना सुना सकना खुल के तो भी कोई छोटा ही सही राज बताना।।
मैं जानती हूं ,मैं थोड़ी झल्ली सी हूं!
उलझे संगीत के संग खामोश भी रहती हूं।।
लेकिन मैं सुन लूंगी तुम्हारी पेशानियों की लकीरों को !
जो ना बता सके उन सारी मुश्किलो को ।।
और मैं बस मुस्कुरा कर उसे देखता रह जाता हू।
ऐसे भी अनजाने मोड़ पे मिलता है कोई दोस्त !
ऐसा सोचता बस सोचता रह जाता हूं।।

©Ahsas Alfazo ke
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