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"समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो शिखरों को

"समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे
समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध"

©HintsOfHeart.
  #राष्ट्रकवि_रामधारी_सिंह_दिनकर